बस्ती में है वो सन्नाटा जंगल मात लगे शाम ढले भी घर पहुँचूँ तो आधी रात लगे मुट्ठी बंद किए बैठा हूँ कोई देख न ले चाँद पकड…
काग़ज़ काग़ज़ धूल उड़ेगी फ़न बंजर हो जाएगा जिस दिन सूखे दिल के आँसू सब पत्थर हो जाएगा टूटेंगी जब नींद से पलकें सो जाऊँग…
तिरी गली में तमाशा किए ज़माना हुआ फिर इस के बा'द न आना हुआ न जाना हुआ कुछ इतना टूट के चाहा था मेरे दिल ने उसे वो शख…
सदियाँ जिन में ज़िंदा हों वो सच भी मरने लगते हैं धूप आँखों तक आ जाए तो ख़्वाब बिखरने लगते हैं इंसानों के रूप में जिस दम…
जैसे मैं देखता हूँ लोग नहीं देखते हैं ज़ुल्म होता है कहीं और कहीं देखते हैं तीर आया था जिधर ये मिरे शहर के लोग कितने सा…
थे ख़्वाब एक हमारे भी और तुम्हारे भी पर अपना खेल दिखाते रहे सितारे भी ये ज़िंदगी है यहाँ इस तरह ही होता है सभी ने बोझ स…
अपने घर की खिड़की से मैं आसमान को देखूँगा जिस पर तेरा नाम लिखा है उस तारे को ढूँडूँगा तुम भी हर शब दिया जला कर पलकों की…
दूरियाँ सिमटने में देर कुछ तो लगती है रंजिशों के मिटने में देर कुछ तो लगती है हिज्र के दोराहे पर एक पल न ठहरा वो रास्ते…
ये और बात है तुझ से गिला नहीं करते जो ज़ख़्म तू ने दिए हैं भरा नहीं करते हज़ार जाल लिए घूमती फिरे दुनिया तिरे असीर किसी…
चेहरे पे मिरे ज़ुल्फ़ को फैलाओ किसी दिन क्या रोज़ गरजते हो बरस जाओ किसी दिन राज़ों की तरह उतरो मिरे दिल में किसी शब दस्…
मुझे अँधेरे में बे-शक बिठा दिया होता मगर चराग़ की सूरत जला दिया होता न रौशनी कोई आती मिरे तआ'क़ुब में जो अपने-आप …
ये है आब-ए-रवाँ न ठहरेगा उम्र का कारवाँ न ठहरेगा छोड़ दी है जगह सुतूनों ने सर पे अब साएबाँ न ठहरेगा रेत पर है असर हवाओं…
गीतों का शहर है कि नगर सोज़-ओ-साज़ का क़ल्ब-ए-शिकस्ता और ये आलम गुदाज़ का चारों तरफ़ सजी हैं दुकानें ख़ुलूस की चमका है …
------------------ सफ़र में ऐसे कई मरहले भी आते हैं हर एक मोड़ पे कुछ लोग छूट जाते हैं ये जान कर भी कि पत्थर हर एक हा…
----------- जीना कब तक मुहाल होगा आख़िर इक दिन विसाल होगा गर न टूटे ये शीशा-ए-दिल तेरा हुस्न कमाल होगा तुम तो तड़पा क…
----------------- इतना एहसान तो हम पर वो ख़ुदारा करते अपने हाथों से जिगर चाक हमारा करते हम को तो दर्द-ए-जुदाई से ही म…
-------------------- गुज़रे जो अपने यारों की सोहबत में चार दिन ऐसा लगा बसर हुए जन्नत में चार दिन उम्र-ए-ख़िज़र की उस …
मिलते जुलते हैं यहाँ लोग ज़रूरत के लिए हम तिरे शहर में आए हैं मोहब्बत के लिए वो भी आख़िर तिरी तारीफ़ में ही ख़र्च हुआ म…
हम तो यूँ ख़ुश थे कि इक तार गरेबान में है क्या ख़बर थी कि बहार इस के भी अरमान में है एक ज़र्ब और भी ऐ ज़िंदगी-ए-तेशा-…
---------------------- अपनी ही आवाज़ को बे-शक कान में रखना लेकिन शहर की ख़ामोशी भी ध्यान में रखना मेरे झूट को खोलो भी…
Social Plugin