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जीना कब तक मुहाल होगा
आख़िर इक दिन विसाल होगा
गर न टूटे ये शीशा-ए-दिल
तेरा हुस्न कमाल होगा
तुम तो तड़पा के जा रहे हो
दिल ये कैसे बहाल होगा
छूने वाला तिरी जबीं को
मेरा दस्त-ए-ख़याल होगा
तेरे लब पे रहे ख़मोशी
मेरे लब पे सवाल होगा
उस की निभती भी है किसी से
'जोश' क्या तेरा हाल होगा
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