अपनी ही आवाज़ को बे-शक कान में रखना - अहमद फ़राज़ | Gazal and Shyari Lyrics by Lyrics World

 


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अपनी ही आवाज़ को बे-शक कान में रखना

लेकिन शहर की ख़ामोशी भी ध्यान में रखना


मेरे झूट को खोलो भी और तोलो भी तुम
लेकिन अपने सच को भी मीज़ान में रखना


कल तारीख़ यक़ीनन ख़ुद को दोहराएगी
आज के इक इक मंज़र को पहचान में रखना


बज़्म में यारों की शमशीर लहू में तर है
रज़्म में लेकिन तलवार को मियान में रखना


आज तो ऐ दिल तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ पर तुम ख़ुश हो
कल के पछतावे को भी इम्कान में रखना


उस दरिया से आगे एक समुंदर भी है
और वो बे-साहिल है ये भी ध्यान में रखना


इस मौसम में गुल-दानों की रस्म कहाँ है
लोगो अब फूलों को आतिश-दान में रखना
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