जैसे मैं देखता हूँ लोग नहीं देखते हैं by अमजद इस्लाम अमजद | Free Lyrics of Hindi Gazal , Shyari and Songs by Lyrics World | Sandeep Kr Singh




जैसे मैं देखता हूँ लोग नहीं देखते हैं
ज़ुल्म होता है कहीं और कहीं देखते हैं


तीर आया था जिधर ये मिरे शहर के लोग
कितने सादा हैं कि मरहम भी वहीं देखते हैं


क्या हुआ वक़्त का दा'वा कि हर इक अगले बरस
हम उसे और हसीं और हसीं देखते हैं


उस गली में हमें यूँ ही तो नहीं दिल की तलाश
जिस जगह खोए कोई चीज़ वहीं देखते हैं


शायद इस बार मिले कोई बशारत 'अमजद'
आइए फिर से मुक़द्दर की जबीं देखते हैं

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