थे ख़्वाब एक हमारे भी और तुम्हारे भी by अमजद इस्लाम अमजद | Free Hindi Gazal, Shyari and Lyrics by Lyrics World | Sandeep Kr Singh

थे ख़्वाब एक हमारे भी और तुम्हारे भी by अमजद इस्लाम अमजद | Free Hindi Gazal, Shyari and Lyrics by Lyrics World | Sandeep Kr Singh



थे ख़्वाब एक हमारे भी और तुम्हारे भी
पर अपना खेल दिखाते रहे सितारे भी


ये ज़िंदगी है यहाँ इस तरह ही होता है
सभी ने बोझ से लादे हैं कुछ उतारे भी


सवाल ये है कि आपस में हम मिलें कैसे
हमेशा साथ तो चलते हैं दो किनारे भी


किसी का अपना मोहब्बत में कुछ नहीं होता
कि मुश्तरक हैं यहाँ सूद भी ख़सारे भी


बिगाड़ पर है जो तन्क़ीद सब बजा लेकिन
तुम्हारे हिस्से के जो काम थे सँवारे भी


बड़े सुकून से डूबे थे डूबने वाले
जो साहिलों पे खड़े थे बहुत पुकारे भी


प जैसे रेल में दो अजनबी मुसाफ़िर हों
सफ़र में साथ रहे यूँ तो हम तुम्हारे भी


यही सही तिरी मर्ज़ी समझ न पाए हम
ख़ुदा गवाह कि मुबहम थे कुछ इशारे भी


यही तो एक हवाला है मेरे होने का
यही गिराती है मुझ को यही उतारे भी


इसी ज़मीन में इक दिन मुझे भी सोना है
इसी ज़मीं की अमानत हैं मेरे प्यारे भी


वो अब जो देख के पहचानते नहीं 'अमजद'
है कल की बात ये लगते थे कुछ हमारे भी

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