अपने घर की खिड़की से मैं आसमान को देखूँगा by अमजद इस्लाम अमजद | Free Gazal, Shyari and Hindi Songs Lyrics by Lyrics World | Sandeep Kr Singh





अपने घर की खिड़की से मैं आसमान को देखूँगा
जिस पर तेरा नाम लिखा है उस तारे को ढूँडूँगा


तुम भी हर शब दिया जला कर पलकों की दहलीज़ पे रखना
मैं भी रोज़ इक ख़्वाब तुम्हारे शहर की जानिब भेजूँगा


हिज्र के दरिया में तुम पढ़ना लहरों की तहरीरें भी
पानी की हर सत्र पे मैं कुछ दिल की बातें लिक्खूंगा


जिस तन्हा से पेड़ के नीचे हम बारिश में भीगे थे
तुम भी उस को छू के गुज़रना मैं भी उस से लिपटूँगा


ख़्वाब मुसाफ़िर लम्हों के हैं साथ कहाँ तक जाएँगे
तुम ने बिल्कुल ठीक कहा है मैं भी अब कुछ सोचूँगा


बादल ओढ़ के गुज़रूँगा मैं तेरे घर के आँगन से
क़ौस-ए-क़ुज़ह के सब रंगों में तुझ को भीगा देखूँगा


बे-मौसम बारिश की सूरत देर तलक और दूर तलक
तेरे दयार-ए-हुस्न पे मैं भी किन-मिन किन-मिन बरसूँगा


शर्म से दोहरा हो जाएगा कान पड़ा वो बुंदा भी
बाद-ए-सबा के लहजे में इक बात में ऐसी पूछूँगा


सफ़्हा सफ़्हा एक किताब-ए-हुस्न सी खुलती जाएगी
और उसी की लय में फिर मैं तुम को अज़बर कर लूँगा


वक़्त के इक कंकर ने जिस को अक्सों में तक़्सीम किया
आब-ए-रवाँ में कैसे 'अमजद' अब वो चेहरा जोड़ूँगा

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