बस्ती में है वो सन्नाटा जंगल मात लगे शाम ढले भी घर पहुँचूँ तो आधी रात लगे मुट्ठी बंद किए बैठा हूँ कोई देख न ले चाँद पकड…
काग़ज़ काग़ज़ धूल उड़ेगी फ़न बंजर हो जाएगा जिस दिन सूखे दिल के आँसू सब पत्थर हो जाएगा टूटेंगी जब नींद से पलकें सो जाऊँग…
तिरी गली में तमाशा किए ज़माना हुआ फिर इस के बा'द न आना हुआ न जाना हुआ कुछ इतना टूट के चाहा था मेरे दिल ने उसे वो शख…
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