रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ - अहमद फ़राज़ | Gazal and Shyari lirics Blog By Sandeep Singh

 


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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए

फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए

कुछ तो मिरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रख

तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए

पहले से मरासिम सही फिर भी कभी तो

रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम

तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए

इक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिर्या से भी महरूम

राहत-ए-जाँ मुझ को रुलाने के लिए

अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़ह्‌म को तुझ से हैं उमीदें

ये आख़िरी शम'एँ भी बुझाने के लिए

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