कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है ,,, ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है - जगजीत सिंह गजल

 कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है ,,, ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है - जगजीत सिंह गजल



कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है

ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है


वो जो आये तो ख़लिश और जवाँ होती है
रूह को शाद करे, दिल को जो पुरनूर करे


हर नज़ारे में ये तनवीर कहाँ होती है
ज़ब्त-ए-सैलाब-ए-मुहब्बत को कहाँ तक रोकें


दिल में जो बात हो आँखों से अयाँ होती है
ज़िन्दग़ी एक सुलगती-सी चिता है 'साहिर'


शोला बनती है न ये बुझ के धुआँ होती है

वो न आये तो सताती है ख़लिश सी दिल को





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