ख़ुद को इस शहर में तन्हा भी नहीं कह सकते by नफ़स अम्बालवी, Free Gazal Lyrics by Sandeep Singh Blog


ख़ुद को इस शहर में तन्हा भी नहीं कह सकते by नफ़स अम्बालवी, Free Gazal Lyrics by Sandeep Singh Blog


ख़ुद को इस शहर में तन्हा भी नहीं कह सकते
और किसी शख़्स को अपना भी नहीं कह सकते


अपनी क़ुर्बत में भी तू ने हमें प्यासा रक्खा
हम तो दरिया तुझे दरिया भी नहीं कह सकते


किस के सज्दों में झुकें किस से दु'आएँ माँगें
हर किसी को तो मसीहा भी नहीं कह सकते


गाँव में आज भी लगता है वो घर है अपना
उस की मिट्टी को तो मलबा भी नहीं कह सकते


ज़िंदगी एक तमाशा है मगर क्या कीजे
इस तमाशे को तमाशा भी नहीं कह सकते


रोज़ आईने में मिलता है नए ज़ख़्म लिए
एक चेहरा जिसे चेहरा भी नहीं कह सकते

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