उम्र गुज़री है तिरी गलियों के चक्कर काट कर by आमिर अता | Gazals and Shyari Lyrics by Lyrics World

 


--------

'उम्र गुज़री है तिरी गलियों के चक्कर काट कर

क्यों न लिख्खूँ ख़ुद को मजनूँ मैं सुख़नवर काट कर


जाने ये कैसी शरारत आज सूझी है उसे
वो मुझे उड़ने को कहती है मिरे पर काट कर


जब भी मैं हिम्मत जुटा कर करता हूँ इज़हार-ए-'इश्क़
बोलने लगती है पगली बात अक्सर काट कर


कितनी आसानी से करते हैं वो पूरी ख़्वाहिशें
माई पत्थर दिल पे रख कर बाबा पत्थर काट कर


आज फिर पीछे पड़ा है क़ाफ़िला फ़िरऔन का
ऐ मिरे रहबर बना रस्ता समुंदर काट कर


ऐ 'अता' ज़ाहिर तो कर बेचैनियों के राज़ कुछ
लिख रहा है नाम किस का तू बराबर काट कर
-----------

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ